Inner beauty

Inner beauty

भावनाओं  मे बेहना और भावनाओं से काम लेना दोनों में ही अंतर है। एक दिमाग की बातें करता है और दूसरा दिल को बया करता है। जरूरी भी है किसी काम को दिल दिमाग का समीशरण बना दे तो वहा स्थायित्व आती है। यह स्थायित्व शब्दों के मायाजाल से परे हट कर एक जागरूकता को भी बयान करता है। हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए की हम प्रशंसा भी उसी तथ्य का करे जो स्वीकार्य योग्य हो, झूठी प्रशंसा कुछ पलो की होती है। हम वास्तविकता से नजरअंदाज नहीं कर सकते है। हमारी आंतरिक सुन्दरता ही वास्तविक सुन्दरता है जो किसी झुठी प्रशंसा का मोहताज नहीं। वह तो अपने आप ही दिखता है, वास्तविक सुंदरता मन की होनी चाहिए, तन की नहीं, तन तो आज है कल नहीं। हमारी पहचान हमारे मन से जुड़ी होनी चाहिए जहा सच्चाई हो, सहर्दयता पाक दिल हो। ये मन की सुंदरता भी अपने आप नहीं आती। इस सुंदरता को लाने के लिए प्रत्येक मनुष्य का त्याग, तपस्या, सच्ची लगन से मेहनत करने से आती है, तभी हम जो करते है वो करते h।


आज कल के दौड़ भाग की जिंदगी में मन को संयम में लाना एक कठिन काम हो गया है। लोग कहते कुछ और करते कुछ है क्युकी उनकी मानसिकता hi ऐसी हो गई है की वे समय के आधार को रखते हुए खुद को प्रस्तुत करते है। अतः वे उन्हीं बातो को जोड़ दे रहे है जहा समय का तकाजा हो। ऐसे में वे अपनी बातो को अच्छी तरह से बया नहीं कर पाते। खुद को नियंत्रण करना जरूरी है पर इसके लिए आवश्यक तथ्य से अनदेखा नहीं कर सकते । खुद को स्वस्थ्य और सामान्य बनाए रखने के लिए खुद का ख्याल भी जरूरी है। निरंतर योग, ध्यान लगाना, प्राणायाम और सुबह की सैर आवश्यक है। जो हमारी मानसिक स्थिति को न केवल मजबूत बनाता है बल्कि अपने देश समाज अपने घर , इन सभी के कर्तव्यो का पालन करने में योगदान देता है। अतः आंतरिक सुंदरता ही हमारी परिवेश में होना चाहिए और निरंतर इसे बढ़ाने की कोशिश होनी चाहिए।